बस चाय तक, सीझन २, भाग-1, नॉन स्टॉप राइटिंग चेलेन्ज २०२२ भाग-1
बस चाय तक.....सीझन २, भाग-१ नॉन स्टॉप राइटिंग चेलेन्ज २०२२ भाग-१
हेल्लो दोस्तों,
आज से बस चाय तक की सीझन 2 शुरू करने जा रहा हु| वैसे ज्यादा फर्क नहीं दोनों में, फिर भी कुछ फर्क जरुर होगा| वैसे पहली सीझन में बहुत कम चाय पिलाई है (क्या करे? मुड बहुत कम बार ओंन रह
पता था| इस बार कोशिश रहेगी ज्यादा
से ज्यादा चाय पी जाये |)
चलिये चलते है एक छोटी सी बात समजने, सोचने और कन्फ्यूज्ड लोगो की हेल्प करने|
हम रोजबरोज जीते है, सोचते है, दिनभर के काम
करते है, थकते है, खेलते है, आनंद करते है, घुमते है, आराम करते है , और सब से ज्यादा रोज अनेकोबार मरते है|
ये कन्फ्यूज्ड और मरते दो
शब्दों से आप भी कन्फ्यूज्ड हुवे न ! चलिये समजने का प्रयास करते है|
कभी कभी ऐसा दौर इन्सान के जीवन में आता है की
वो कुछ भी करे, कैसा भी करे, लेकिन आसपास के लोग, वातावरण, सगे संबंधी, दोस्तो, नौकरी या बिजनेस कही से भी उस के इच्छानुसार फल प्राप्त नहीं हो
पाता| उस वक़्त उसे लगता है की मै तो प्रयास कर रहा हु, लेकिन मुझे एवोइड किया जा रहा है या मेरे नसीब में नहीं है, या असफलता मिल रही है|
वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं होता| बस एक दौर मुश्किल सा होता है जिसे सबकुछ भुलाकर व्यतीत
होने देना होता है, मुश्किल काम
है| क्युकी सीदा साधा इन्सान
भी धोखा खा जाता है जब अचानक सफलता मिलनी बंध हो जाती है| लोग डिप्रेशन में चले जाते है, अचानक जीवन का संतुलन बीगड़ जाता है| ये समजना बड़ा मुश्किल सा है लेकिन तब हमें ये सोचना चाहिये
की जो नही मिल रहा है उस से दुखी हो या जो है उस से खुश हो.....आइये एक छोटी सी
कहानी से समजने की कोशिश करते है|
एक शहर में एक इन्सान नौकरी कर रहा था | इसी शहर
में उन का खुद का एक घर भी था| अपने परिवार के साथ वो रहता था और हमेशा वो आदमी
अपने विचारों से परेशान ही रहता| उसे लगता था
की घर का सारा खर्च मुझे ही उठाना पड रहा है, पुरे परिवार को मुझे ही निभाना पड रहा है| सब के पेट भरने की जिम्मेदारी भी मेरी और हमेशा जो मेहमान आते रहते उसे भी
संभालने का काम भी केवल मेरा है| सब की जरुरत, इच्छाए, खाना पीना, भेट सौगाद लाना, परिवार में आते शुभ प्रसंगों में भी उचित व्यवहार करना ये सब मुझे ही करना
पड़ता है|
बस ऐसे ही विचारो से वह इन्सान हमेशा बहुत दुखी
रहता था और इसी वजह से उस का स्वभाव भी चिडचिडा हो चुका था| घर में पत्नी के साथ
अक्सर जगडा करता तो बच्चो को हमेंशा बार बार डाट देता| जैसे ये जीवन उसे भारी लगाने लगा था|
एक दिन वो अपने काम से वापस आया और खाना खाकर
बैठा हुवा था तब उस का छोटा बेटा हाथ में नोटबुक और पेन लेकर उन के नजदीक आया और
बोला,”पापा, आप मेरा होमवर्क कर ने में हेल्प दो न|”
बेटे की इस फरमाइश से वो इन्सान आगबबुला हो गया
और अपने बेटे को धमकाया और बहुत डाट दिया| बेटा चला गया और चुपचाप सो गया|
कुछ देर बार उस इन्सान का गुस्सा शांत हुवा और
वो अन्दर के रूम में गया और देखा की बेड पर उन की पत्नी के साथ लिपटकर वो छोटा
बेटा सो गया था| मगर उस की नोटबुक वही खुली
पडी हुई थी| उस ने नोटबुक उठाई और देखी|
नोटबुक में एक प्रश्न लिखा हुवा था,”ऐसा क्या है जो शुरू में कड़वा लगता है जब की सही में वो
मीठा होता है?”
इस प्रश्न के जवाब में उस छोटे बेटे ने क्या
लिखा होगा ये जान ने की उत्सुकता वो आदमी नहीं मिटा पाया और उसने आगे जवाब पढ़ा जो बेटे
के हाथो से लिखा गया था की....
‘बीमारी के वक़्त मुझे दवाईया पसंद नहीं, क्युकी वो कड़वी होती है...फिर भी मै पी लेता हु क्युकी, दवाईया बीमारी दूर करती है|
परीक्षा मुझे पसंद नहीं क्युकी उस वक़्त बहुत कुछ
पढ़ना-लिखना पड़ता है, लेकिन मै
महेनत कर लेता हु, क्युकी उस परीक्षा के बाद लंबा वेकेशन मिलनेवाला होता है|
सबेरे सबेरे मुझे एलार्म की आवाज पसंद नहीं, लेकिन उसी की बदौलत मै स्कुल पे समय पर पहुच सकता हु|
मेरे पापा मुझे डाटते है, परेशान करते है| शुरू में मुझे बहुत बुरा लगता है लेकिन बाद में मेरे पापा ही मेरे लिए खिलौने
ले आते है, मेरे लिये स्वादिष्ट खाना
ले आते है, मुझे सैर कराने ले जाते है| मै इश्वर को बहुत ही धन्यवाद करता हु की, मुझे पापा दिये, क्युकी मेरे दोस्त सोहम को तो पापा ही नहीं है!’
उस इन्सान ने जब अपने बेटे का ये होमवर्क देखा, पढ़ा और उस का दिल झंझोड़ उठा| इस लिखे हुवे जवाब से उन के
ह्रदय पर गहरा प्रभाव पडा| उस आखरी
पेरेग्राफ ने उस की आखे खोल डाली| वो मन में ही
फुसफुसाया,”मुज से बेहतर तो मेरा बेटा
ज्यादा समजदार है|
और उस ने नये तरीके से सोचा की...
“मै पुरे परिवार का निर्वाह कर रहा हु, लेकीन मै खुशनसीब हु की मेरे पास परिवार तो है|
मै पुरे घर को संभालता हु और घर की जिम्मेदारी
मेरे सिर पर है, इस का मतलब मेरे पास घर है|
मेरे घर मेहमान आते है, इस का मतलब है समाज में
मेरी प्रतिष्ठा है, इज्जत है|
हे इश्वर तेरा कोटी कोटी धन्यवाद की आप ने मुझे
जिम्मेदारी के साथ साथ सुखी जीवन दिया है| जिन बेचारों के पास कुछ भी नहीं है उन जैसो की जिन्दगी से कही बेहतर मेरी
जिन्दगी है|
अब उस व्यक्ति के विचार सकारात्मक बन चुके थे|
अब वो खुश था| जहा पहले वो दुखी रहता था| बाहरी तो ठीक ऐसा ही चल रहा था लेकिन अब वो सुखी था| एक छोटे से दिमाग ने ट्रेक चेंज कर लिया और उस की जीवन की
गाडी सही पटरी पर चलने लगी और उस का जीवन ही समुचित बदल गया|
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एक दूसरी कहानी से भी इस पहलू को समजने की कोशिश
करते है.....
फीलोसोफी के प्रोफ़ेसर ने क्लास में सब के बीच एक
काच की बरनी रखी और उस में टेनिस के बोल्स डालने लगे| जब तक टेनिस बोल्स अन्दर जा सकते थे वहा तक बरनी उस टेनिस
के बोल्स से भर दी| फिर प्रोफेसर
ने अपना चेहरा स्टूडेंट्स की ओर घुमाया और बोले,”क्या ये बरनी पुरी भर चुकी है?”
सब की “हां” में आवाज आई और प्रोफ़ेसर ने
मुस्कुराकर उस बरनी में छोटे छोटे कंकर डालने शुरू किये और बरनी को हिला हिलाकर
जहा तक कंकर जा सकते थे भर दिये| जहा जहा उस
बरनी में खाली जगह थी वहा पर वो कंकर ने अपने स्थान ले लिए| अब फिर से प्रोफ़ेसर ने पूछा,”क्या अब बरनी भर चुकी है?”
फिर से स्टूडेंट्स ने “हां” बोल दिया|
अब प्रोफ़ेसर ने साथ वाली थेली से रेत निकाली और
बरनी में भरने लगे| वो मुस्कुराकर रेत भर रहे थे और बरनी में छोटी छोटी जहा जगह
बची थी वहा रेत अपना स्थान लेने लगी और स्टूडेंट्स भी साथ में मुस्कुरा रहे थे| जब रेत की भी जगह बरनी में न रही तब एक बार फिर प्रोफ़ेसर
ने पुछा,” अब बरनी भर गई?”
“अब तो सही में सर” सब ने एक ही आवाज में जवाब
दिया|
अब प्रोफ़ेसर ने एक थर्मोस निकाला और उस में से
दो प्यालो में चाय निकाली जिसे धीरे धीरे बरनी में डाल दी| बरनी की रेत में चाय का अवशोषण हो गया| ये देखकर
स्टूडेंट्स देखते ही रह गये|
अब प्रोफ़ेसर ने फ़िलसुफ़ी समजाना शुरू किया....
“दोस्तों, ये टेनिस बोल्स जो आप के जीवन के सब से महत्वपूर्ण भाग यानी की भगवान, इश्वर, माता-पिता, गुरुदेव, परिवार, मतलब पत्नी, बेटे-बेटी, दोस्तों,
स्वास्थ्य.......
कंकर मतलब आप की जॉब, व्यवसाय, बिजनेस, गाडी, बड़ा घर, आप के छोटे मोटे शौख......
और रेत मतलब छोटी छोटी बेकार की बाते, मतभेद, मनभेद, मनमुटाव, जगड़े, इर्ष्या, अविश्वास.....
अगर आप बरनी रुपी जीवन में सब से पहले रेत भर
देते हो तो छोटे छोटे कंकर या टेनिस बोल्स भरने की जगह नहीं बचती है| और अगर आप छोटे छोटे कंकर भरते हो तो टेनिस बोल्स की जगह तो
बिलकुल ही नहीं बचती.....
बस यही बात अपने जीवन में लागू होती है|अगर हम छोटी छोटी बातो में उलजते रहे तो शक्ती वही नष्ट हो
जाती है| और हम अपनी जीवन की
महत्त्व की जरूरियात और इच्छित वास्तुओ पर समय ही नहीं दे सकते है|
इसीलिए हमें तय करना है की हमारे सुख के लिये
क्या महत्वपूर्ण और क्या सब से जरुरी है? टेबल टेनिस बोल्स पे ही ध्यान रखे ये सब से बेहतर होगा ना ! हम पहले ही ये
सोच ले की सब से महत्वपूर्ण क्या है? बाकी सब रेत
ही रेत तो है ही|
सब स्टूडेंट्स ध्यान से सुन रहे थे की एक ने
अचानक पूछा, ”सर, तो फिर वो दो प्याले की चाय?” (आप में से कीसी के मन में ये चायवाला प्रश्न आया हो तो नीचे टीप्पडी में
जरुर लिखे)
“मै यही सोच रहा था की अब तक कीसी ने क्यु ये
बात नहीं पूछी ?” प्रोफ़ेसर ने हसकर कहा|, “इस का आसान जवाब ये है की जीवन में कभी भी कीसी भी वक़्त ऐसा लगे की अब
हमारा जीवन परिपूर्ण और संतुष्ट व्यतीत हो रहा है, लेकिन अपने खास दोस्त के साथ ‘दो कप’ चाय पीनी की हमेशा जगह होनी चाहीये|”
क्या ख़याल है आप का? इस बार पर हो जाये फिर एक एक कप चाय......चलिये चाय के बाद
चलते है...फिर मिलेंगे....हेव ए नाईस लाइफ...लाइक ए कप ऑफ़ टी...विथ अ बेस्ट
फ्रेन्ड...फोरेवर...ब..बाय..|
# नॉन स्टॉप राइटिंग चेलेन्ज २०२२ (पोस्ट 1)
pk123
18-Apr-2022 08:34 AM
Nice
Reply
PHOENIX
18-Apr-2022 10:34 AM
Thanks
Reply
Gunjan Kamal
17-Apr-2022 11:14 PM
बेहतरीन
Reply
PHOENIX
17-Apr-2022 11:22 PM
Thank you 😊
Reply